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ऑनलाइन शिक्षण : अध्यापकों के लिए चुनौती

(अनु अग्रवाल )

कोविड संकट ने इंसानों के जीवन के हर पक्ष को प्रभावित किया है | शिक्षा जगत पर भी इसका व्यापक असर पड़ा है | शिक्षण संस्थानों ने कोरोना से उत्पन्न समस्या को एक अवसर मानते हुए ऑनलाइन शिक्षण को अपना लिया| कुछ समय पूर्व तक बच्चे,शिक्षक और अभिभावक ही शिक्षा के मुख्य आधार थे | अब उसमे डिजिटल नामक एक नया आधार जुड़ गया है |इसमें कोई संदेह नहीं कि शिक्षा की महत्वपूर्ण कड़ी अध्यापक हैं पर वर्चुअल कक्षाओं ने इन्टरनेट को भी एक अहम कड़ी बना दिया है | लगभग तीन महीनों से शिक्षण संस्थाओं में छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा दी जा रही है | श्यामपट्ट से शुरू होने वाला सफर माऊस की क्लिक तक पहुँच गया है | अब प्रश्न यह उठता है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा से सब ठीक चल रहा है ? वो कौन कौन सी चुनौतियाँ हैं जिनका सामना अध्यापकों को करना पड़ रहा है ?

अधिकांश अध्यापकों की तकनीकी समझ इतनी विकसित नही है जितनी ऑनलाइन कक्षाओं के संचालन के लिए आवश्यक है |वे इस नई शिक्षा व्यवस्था में खुद को ढाल रहे हैं | ऑनलाइन कक्षाओं को लेने का प्रशिक्षण ले रहे हैं | सामान्य कक्षाओं में शिक्षक छात्रों की बोलचाल,उनकी प्रतिक्रिया,देखकर समझ सकता था कि छात्रों को विषय कितना समझ में आया परन्तु ऑनलाइन शिक्षण में प्रत्यक्ष रूप से आमने-सामने बात करने का मौका नहीं मिलता | छात्रों को समझने, उनकी प्रगति की निगरानी ऑनलाइन शिक्षण द्वारा कठिन है| अध्यापक छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान देने में अक्षम हो रहा है | छात्रों को अध्ययन का सक्रिय हिस्सा न बन पाने से उनकी प्रेरणा खत्म हो रही है | छात्रों में अनुशासन का अभाव हो रहा है, उनकी उत्पादकता कम हो रही है| इन्टरनेट की उचित व्यवस्था और संसाधन न होने के कारण कक्षा में छात्रों की घटती संख्या भी अध्यापकों के लिए चिंता का कारण है| अध्यापक छात्रों की शरारतें,उनकी जिज्ञासु प्रवृति,उनके बचकाने प्रश्न,उनके साथ भावनात्मक संबंधों की कमी महसूस करते हैं |

यद्यपि आज इस कोरोना-काल में ऑनलाइन शिक्षण के दौरान अध्यापकों को कई ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है जो उसने अपने सामान्य शिक्षण काल में नहीं की थी परन्तु एक शिक्षक कभी हार नही मानता| चाणक्य ने भी कहा है “मैं शिक्षक हूँ | यदि मेरी शिक्षा में सामर्थ्य है तो अपना पोषण करने वाले सम्राटों का निर्माण मैं खुद कर लूँगा |”

परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है|किसी भी परिवर्तन को स्वीकार करने में समय और श्रम तो लगता ही है वैसे ही वर्तमान संकट और भविष्य की जरूरतों को ध्यान में रखते हुए शिक्षा व्यवस्था में आये हुए इस ऑनलाइन शिक्षण को आंशिक विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है |

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